सुप्रीम कोर्ट में 16वें दिन की सुनवायी में हिंदू महासभा के वकील की दलील
नई दिल्ली, (mediasaheb.com) । श्रीराम जन्मभूमि के स्वामित्व विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को 16वें दिन सुनवायी हुई। हिंदू महासभा के वकील हरिशंकर जैन ने अपनी दलीलें पेश करते हुए कहा कि 1528 से लेकर 1855 तक राम जन्मभूमि पर मस्जिद की मौजूदगी को लेकर कोई मौखिक या दस्तावेजी सबूत नहीं हैं। अंग्रेजों के आने के बाद से विवाद की शुरुआत हुई। हिंदुओं से पूजा का अधिकार छीन लिया गया और मुसलमानों को विवादित ज़मीन पर शह मिली। उन्होंने कहा कि बाबर एक विदेशी हमलावर था। क्या एक विदेशी आक्रांता के हक को अब हम तरजीह देंगे? हम दासता के उन काले दिनों को बहुत पीछे छोड़ आए हैं। आज हम एक सभ्य समाज में रह रहे हैं।
श्रीराम जन्मभूमि मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ सप्ताह में पांच दिन यानी सोमवार से शुक्रवार तक कर रही है। प्रतिदिन करीब चार घंटे सुनवाई हो रही है। पीठ के चार अन्य सदस्यों में जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसए नजीर शामिल हैं।
मामले में निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान के वकील अपनी दलीलें पहले ही पूरी कर चुके हैं। शुक्रवार को अखिल भारतीय श्रीराम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति के वकील पीएन मिश्रा, हिंदू महासभा के वकील हरिशंकर जैन और शिया वक्फ बोर्ड के वकील एमसी ढींगरा ने अपनी दलीलें रखीं। 16वें दिन हिंदू पक्ष की जिरह पूरी हो गई। एमसी ढींगरा ने कहा, “सारी जमीन हिंदुओं को दे दी जाए।” अब दो सितंबर (17वें दिन) को सुन्नी पक्ष जिरह शुरू करेगा।
पुनरुद्धार समिति के वकील पीएन मिश्रा ने कहा कि 8वीं सदी के इस्लामिक विद्वान इमाम अबू हनीफा ने कहा था कि जहां दिन में कम से कम दो बार अज़ान न हो, वो जगह मस्ज़िद नहीं हो सकती। कई विद्वानों ने कहा है कि कब्रों से घिरी इमारत मस्ज़िद नहीं हो सकती। 1855 से पहले वहां नमाज का कोई सबूत नहीं है। राजस्व रिकॉर्ड में जगह को जन्मस्थान लिखा गया था। मुसलमानों का दावा साबित करने के लिए 19वीं सदी में रिकॉर्ड में छेड़छाड़ की गई। बिना घंटी बजाए मंदिर में पूजा नहीं की जा सकती है। जस्टिस बोबडे ने पूछा कि क्या विवादित स्थल से कोई घंटी मिली थी? मिश्रा ने कहा कि हां, वहां से घंटी मिलने के सबूत हैं और मौखिक सबूत भी हैं।
उन्होंने हदीस के सहीह अल बुखारी का हवाला देते हुए कहा कि पैगम्बर मोहम्मद ने कहा है कि हिन्दू और मुस्लिमों के दो अलग-अलग कबीले एकसाथ एक ही जमीन पर नहीं रह सकते। मिश्रा ने कहा कि शाहजहां से एक इस्लामिक स्कॉलर अब्दुल हकीम ने कहा था कि मस्जिद अगर मंदिर को गिराकर बनाई जाती है तो वह मस्जिद नहीं होती है। मिश्रा ने कहा कि पैगंबर मोहम्मद ने कहा था कि कब्र की तरफ़ चेहरा करके नमाज नहीं पढ़ी जा सकती, लेकिन विवादित ढांचे के आस-पास कई कब्र थीं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा कि क्या कोई शासक सरकारी या अपनी निजी अधिकार वाली जमीन पर मस्जिद बना सकता है? मिश्रा ने कहा कि मुगल काल में ऐसा हुआ था, लेकिन बादशाह को काज़ी ने जवाब दिया था कि अपनी कमाई से खरीदी ज़मीन पर मस्जिद बनाने के बाद उसके मेंटेनेंस भी करना होगा।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा- मस्जिद कैसी होनी चाहिए
जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा कि मस्जिद कैसी होनी चाहिए। मस्जिद में नमाज पढ़ने का क्या तरीका है, इसके बारे में आपने हमें बताया, आप अपनी जिरह के अहम बिंदुओं को हमें बताइए। मिश्रा ने कहा कि वाकिफ ज़मीन का मालिक होना चहिए। वाकिफ के द्वारा ही ज़मीन को दान दिया हो, मस्जिद में कम से कम दो समय नमाज पढ़ी जाए, वहां पर वज़ू के इंतज़ाम होना चाहिए। मस्जिद में किसी भी जानवर, जीवित की तस्वीर या पेंटिंग न हो, मस्जिद में घंटी नहीं होनी चहिए। एक प्लाट में मस्जिद और मंदिर नही होनी चाहिए। मस्जिद में निवास स्थान नहीं होना चाहिए, रसोई नहीं होनी चाहिए। मस्जिद किसी दूसरे की ज़मीन पर नहीं बनी हो, मस्जिद के आसपास कब्र नहीं होनी चाहिए, मस्जिद दूसरे धर्मों के लोगों के संरक्षण में नहीं होनी चहिए। मिश्रा ने कहा कि ज़मीन कभी मुसलमानों के कब्जे में नहीं रही, वह हमारे कब्जे में थी। मुसलमान शासक होने की वजह से जबरन वहां नमाज़ अदा करते थे। 1856 से पहले वहां कोई नमाज नहीं होती थी। मिश्रा ने कहा कि भगवान विष्णु के 7वें अवतार भगवान राम उसी स्थान पर पहले प्रकट हुए थे । मिश्रा ने एक श्लोक पढ़ते हुए कहा कि “भए प्रकट कृपाला…” प्रकट होने का मतलब है कि भगवान राम सूक्ष्म रूप से तो वहां सनातन समय से रहे हैं, बस रामनवमी की दोपहर भगवान राम प्रकट हुए। मिश्रा ने कहा कि 1856 से पहले वहां कोई नमाज नहीं होती थी और 1934 से सिर्फ शुक्रवार की नमाज होती थी, जो पुलिस के पहरे में होती थी, यह पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज है।
शिया वक्फ बोर्ड ने कहा- हम हिंदुओं का विरोध नहीं करतेशिया वक्फ बोर्ड के वकील ढींगरा ने कहा कि अब तक हिंदू पक्ष ने जो कहा, हम उसका विरोध नहीं करते हैं। वहां जो मस्ज़िद थीं, वो असल में शियाओं की थीं। हाईकोर्ट ने एक तिहाई जगह मुसलमानों को दी थी। हम वो जगह हिंदुओं को देना चाहते हैं। ढींगरा ने कहा कि बाबर के सेनापति मीरबाक़ी ने मस्जिद बनवाई थी, मीरबाक़ी भी शिया ही था। 1949 में जब ताला बंद हुआ था तब तक मुत्तवली शिया ही था। 1944 में मस्जिद के अधिकार का रजिस्ट्रेशन सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के हक़ में रजिस्टर्ड हो गया था। 1946 में बोर्ड के अधिकार को लेकर सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड से हम केस हार गए थे, जिसकी अपील हमने दायर किया हुआ है।