नई दिल्ली, (mediasaheb.com) अयोध्या मामले में दूसरे दिन की सुनवाई बुधवार को खत्म हो गई। इस मामले पर कल यानि 8 अगस्त को भी रामलला विराजमान की तरफ से वरिष्ठ वकील के. परासरन अपनी दलीलें जारी रखेंगे। आज निर्मोही अखाड़ा की तरफ से वरिष्ठ वकील सुशील जैन और रामलला विराजमान की तरफ से वरिष्ठ वकील के. परासरन ने अपनी दलीलें रखीं।
सुनवाई की शुरुआत करते हुए निर्मोही अखाड़ा की ओर से जैन ने कहा कि वह ओनरशिप और क़ब्ज़े की मांग कर रहे हैं, ओनरशिप का मतलब मालिकाना हक नहीं बल्कि क़ब्ज़े से है। उन्हें रामजन्म भूमि पर क़ब्ज़ा दिया जाए। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े से जमीन पर कब्जे के कागजी सबूत मांगे। सुप्रीम कोर्ट ने अखाड़े से पूछा कि क्या आपके पास अटैचमेंट से पहले रामजन्म भूमि पर मालिकाना हक का कोई कागजी सबूत या रेवेन्यू रिकॉर्ड हैं, तब निर्मोही अखाड़े ने जवाब दिया कि 1982 में हुई डकैती में सारे रिकार्ड गायब हो गए।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि अगले 2 हफ्ते में हम मौखिक और दस्तावेज़ी सबूतों को देखना चाहेंगे। सुनवाई के दौरान जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हमको असली दस्तावेज़ दिखाइए। निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि दस्तावेजों का उल्लेख इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले में शामिल है। उसके बाद रामलला विराजमान की तरफ से 92 वर्षीय वरिष्ठ वकील के. परासरन ने दलीलें रखनी शुरू की तो कोर्ट ने कहा कि आप बैठकर भी दलीलें रख सकते हैं। परासरन ने कहा कि परंपरा इसकी इजाजत नहीं देता है, मैं अपनी बात खड़े होकर रखूंगा।
परासरन ने कहा लाखों लोगों की आस्था है कि जहां भगवान राम का जन्म हुआ, वहां मंदिर था, यह खुद में एक सबूत है। परासरन ने कहा कि धर्म का मतलब रिलीजन कतई नहीं है। गीता में धृतराष्ट्र ने पूछा कि धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे, वहां धर्मक्षेत्र का मतलब रिलीजन से कतई नहीं है।ब्रिटिश राज्य में भी जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंटवारा किया तो उस जगह को मस्जिद की जगह राम जन्मस्थान का मंदिर माना था।अंग्रेजों के ज़माने के फैसले में भी वहां बाबर की बनाई मस्जिद और राम जन्मस्थान का जिक्र किया गया था।
जस्टिस बोबडे ने पूछा कि क्या जिस तरह राम का केस सुप्रीम कोर्ट में आया है, कही ओर किसी गॉड का केस आया है। क्या जीसस बेथलम में पैदा हुए, इस पर किसी कोर्ट में सवाल उठा था? परासरन ने कहा कि वह इस मसले को चेक कराएंगे।
उल्लेखनीय है कि अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने पिछले 6 अगस्त से सुनवाई शुरू की थी। 6 अगस्त को पूरे दिन निर्मोही अखाड़ा की तरफ से वकील सुशील जैन ने अपनी दलीलें पेश कीं। उन्होंने कहा था कि विवादित परिसर के अंदरूनी हिस्से में पहले हमारा कब्ज़ा था। जिसे दूसरे ने बलपूर्वक कब्ज़े में ले लिया। बाहरी पर पहले विवाद नहीं था। 1961 से विवाद शुरू हुआ।
सुशील जैन ने कहा था कि मस्ज़िद को पुराने रिकॉर्ड में मस्ज़िद ए जन्मस्थान लिखा गया है। बाहर निर्मोही साधु पूजा करवाते रहे। हिन्दू बड़ी संख्या में पूजा करने और प्रसाद चढ़ाने आया करते थे। निर्मोही के संचालन में कई पुराने मंदिर हैं। झांसी की रानी ने भी हमारे एक मंदिर में प्राण त्यागे थे । सुशील जैन ने अपनी दलीलों में उन पुराने फ़ैसलों का हवाला दिया था, जिनके मुताबिक किसी ऐसी जगह को मस्जिद करार नहीं दिया जा सकता, अगर वहां पर नमाज़ नहीं पढ़ी जा रही हो।
सुशील जैन ने दावा किया था कि विवादित ज़मीन पर मुस्लिमो ने 1934 से पांचों वक़्त नमाज़ पढ़ना बन्द कर दिया था। 16 दिसंबर 1949 के बाद तो जुमे की नमाज़ पढ़ना भी बंद हो गई। 22-23 दिसंबर 1949 को वहां अंदर मूर्तियां रखी गईं। सुशील जैन ने कहा था कि विवादित जगह पर वुज़ू (नमाज से पहले हाथ-पैर धोने) की जगह नहीं है, जो दर्शाता है कि वहां लंबे वक़्त से नमाज़ पढ़ी नहीं जा रही। अखाड़े ने 1931 में विवादित ज़मीन को लेकर दावा पेश किया, जबकि सुन्नी बोर्ड ने 1961 में इसे लेकर मुकदमा दायर किया ।
सुशील जैन ने दावा किया था कि अखाड़ा मंदिर के प्रबंधक की हैसियत से विवादित ज़मीन पर वह अपना दावा कर रहा है, जबकि बाकी हिंदू पक्षकार सिर्फ पूजा के अधिकार का हवाला देकर दावा कर रहे है। 1949 से वहां नमाज़ नहीं हुई, लिहाजा मुस्लिम पक्ष का कोई दावा नहीं बनता। तब सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि 1949 में सरकार ने ज़मीन पर कब्ज़ा किया, निर्मोही अखाड़े ने 1959 में कोर्ट का रुख किया, सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने 1961 में मुकदमा दायर किया। क्या ये सिविल केस में दावे के लिए मुकदमा दायर करने की समयसीमा का उल्लंघन नहीं करता? सुशील जैन ने कहा कि ज़मीन पर हमारा दावा पुराना है, ऐतिहासिक है। 1934 से हमारा कब्जा है। समयसीमा का यहां उनकी ओर से उल्लघंन नहीं हुआ है। (हि.स.)।