लॉस एंजेल्स, (mediasaheb.com) वर्धा के 26 वर्षीय ध्यानेश्वर यियोतकर महात्मा गांधी के सत्य, अहिंसा और सहअस्तित्व के संदेश की 17 देशों में अलख जगाते हुए साइकिल से विश्व भ्रमण करते अमेरिकी हॉलीवुड नगरी लॉस एंजेल्स पहुंच गए हैं जबकि 85 देशों की यात्रा शेष है। उन्होंने अमेरिका के 12 राज्यों में साइिकल भ्रमण भी कर लिया है। अमेरिकी ‘हाईवे’ पर साइकिल चलाते हुए तीन बार हिरासत में लिए गए, पर चेतावनी देकर छोड़ दिए गए।
ध्यानेश्वर ने अपनी यात्रा का अनुभव साक्षा करते हुए कहा कि अभी तक जहां भी गया, कायदे-कानून अलग-अलग देखे। भाषा, बोली, आचार-व्यवहार व वेशभूषा अलग-अलग। सोशल मीडिया सभी जगह खूब प्रचलित है। इस कारण अनेक जगह स्वागत हुआ। स्कूल-कॉलेजों में जाने का भी मौका मिला। एक-दूसरे को जानने का मौका मिला। लोगों को बापू मोहन दास कर्मचंद गांधी के आदर्शों के बारे में बताता था, तो वह बदले में आज के भारत के बारे में पूछते थे। उनके महिला सुरक्षा, महिलाओं से दुष्कर्म, युवाओं में बेरोजगारी, एक विशाल लोकतंत्र होते हुए भी राजनीति में ईमानदारी के अभाव को लेकर चुटीले सवाल होते थे। बावजूद इसके वे भारतीय राजनीति में मोदी के आगमन को एक शुभ संकेत मानते हैं।
इस यात्रा के पहले पड़ाव में ध्यानेश्वर को म्यांमार के बीहड़ जंगल में आधी रात जो अनुभव हुआ, उसने उसकी विश्व मैत्री यात्रा के प्रति उमंग और तेज कर दिया। रविवार को एक गोष्ठी में ध्यानेश्वर ने अपने खट्टे-मीठे संस्मरण सुनाते हुए कहा कि वह दिसंबर की एक रात म्यांमार में साइकल भ्रमण पर थे, तो बीहड़ जंगल को पार करते उसका सामना एक बब्बर शेर से हुआ। संकरी सड़क और सामने शेर को देखकर एक बार लगा कि मौत सामने खड़ी है। ऐसे में कोई विकल्प भी नहीं था। उसने अपना गीत बंद नहीं किया और आंखों में आंखें डालकर शेर को देखता रहा। शेर ने अपना रास्ता बदल लिया। इस घटना ने नया जोशभर दिया। वह एक बार फिर गुनगुनाते हुए साइकिल दौड़ाने लगा। आगे बढ़ा, तो देखा कि एक कबिलाई गांव में कुछ लोग आग के चारों ओर नाच गा रहे हैं। वह जैसे ही वहां पहुंचा, लोगों ने उसे घेर लिया। संकेतों में बात हुई, एक बार तसल्ली होने पर उन्होंने खाने को कंद-मूल दिया और रात्रि विश्राम के लिए जगह दी। वहां से वह लाओस होते हुए दक्षिण थाईलैंड पहुंचे। शाम होते जैसे ही निकले, हरे-भरे खेतों को पार करते समय दो जंगली कुत्तों ने पीछा किया और अंतत: पांव में काट लिया। भला हो, पनिदा दोगसिरी परिवार का, जिसने अपने घर में आठ दिन रखा, कुत्ते के काटने का उपचार कराया और जब तक साइकिल चलाने योग्य नहीं हो गया, यूट्यूब पर देखकर उसे शाकाहारी खाना देते रहे।
ध्यानेश्वर ने बताया कि थाईलैंड से मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया, बाली, ताइवान, चीन, जापान और कोरिया होते हुए गत जुलाई में अमेरिका पहुंचे। अमेरिका ने तीन बार उसका वीजा ठुकराया लेकिन जापान में अमेरिकी राजदूत के निवेदन पर उन्हें वीजा मिल गया। अमेरिका में भी वह करीब 12 राज्यों-ओरेगन, मोंटेना, नार्थ डेकोटा, इलिनोईस, इंडियाना, ओहायो, पेंसेलवेनिया, वाशिंगटन, न्यूजर्सी आदि का भ्रमण कर चुके हैं। भ्रमण के दौरान नार्थ डेकोटा का अनुभव अलग ही था। सूनसान सड़क पर दिनभर 150 किलोमीटर साइकिल चलाते हुए वह भूख और प्यास से बेहाल हो चुका था। सांझ ढलने पर वह एक अमेरिकी के घर के बाहर पहुंचा। दस्तक दी, तो ऐसे लगा कि काल ही सामने खड़ा हो। हाथों में बंदूक लिए दो हट्टे-कट्टे नौजवान सामने थे। उन्होंने कमर एवं गर्दन पर बंदूक तान दी। निवेदन करने पर उन्हें समझ आ गया कि वह कोई चोर या लुटेरा नहीं बल्कि भूख और प्यास से बेहाल है और साइकिल विश्वमैत्री भ्रमण पर है, तो गले लगा लिया। रातभर रहने को जगह और खाने के लिए विशेष रूप से शाकाहारी भोजन दिया तो लगा मानों सारी थकान ही मिट गई।
वर्धा के एक छोटे से तले गांव, ताला टूले, डिविजन नागपुर में पले बढ़े ध्यानेश्वर ने नागपुर में पहले बीए और फिर एमबीए की पढ़ाई की। नौकरी करके एक लाख रुपये कमाये और एक दिन विश्वभ्रमण पर निकल पड़े। उन्हें भलीभांति मालूम था कि उसके छोटे से परिवार में पिता का निधन हो चुका है। 98 वर्षीय बूढ़ी दादी और विधवा मां की देख-रेख करने वाला उसके शिवाय घर में कोई नहीं। बहन छोटी और भाई पुणे में अध्ययन कर रहा है। इसके बावजूद पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनका कहना है कि अभी 85 देशों की यात्रा करनी शेष है। वह पाकिस्तान और अफगानिस्तान भी जाना चाहते हैं।(हि स)।