भोपाल
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव आज भोपाल में एक ऐतिहासिक पल का साक्षी बनने जा रहे हैं। वे दुनिया की पहली विक्रमादित्य वैदिक घड़ी और इसके मोबाइल ऐप का लोकार्पण करेंगे। यह घड़ी भारतीय काल गणना की प्राचीन परंपरा को आधुनिक तकनीक के साथ जोड़कर समय को एक नए अंदाज में पेश करती है। इस घड़ी की खासियत हम आपको बता रहे हैं।
24 घंटे नहीं, 30 मुहूर्त का अनोखा समय
विक्रमादित्य वैदिक घड़ी पारंपरिक 24 घंटे की घड़ी से पूरी तरह अलग है। यह भारतीय वैदिक काल गणना पर आधारित है, जिसमें दिन को 30 मुहूर्तों में बांटा गया है। इस घड़ी में सूर्योदय को शून्य और सूर्यास्त को 15 मुहूर्त माना जाता है। हर मुहूर्त लगभग 48 मिनट का होता है, जो भारतीय पंचांग के हिसाब से दिन और रात के समय को प्रकृति के साथ जोड़ता है। यह घड़ी न केवल समय बताती है, बल्कि भारतीय संस्कृति की वैज्ञानिक और आध्यात्मिक गहराई को भी दर्शाती है।
कैसे काम करती है यह घड़ी?
विक्रमादित्य वैदिक घड़ी भारतीय पंचांग और वैदिक काल गणना की प्राचीन पद्धति को आधार बनाकर संचालित होती है। यह सूर्योदय और सूर्यास्त के समय के अनुसार दिन को 30 मुहूर्तों में विभाजित करती है, जिससे समय की गणना प्रकृति के चक्रों के साथ संनादित रहती है। इसका मोबाइल ऐप उपयोगकर्ताओं को 3179 विक्रम पूर्व (श्रीकृष्ण के जन्म) से लेकर 7000 वर्षों से अधिक का विस्तृत पंचांग उपलब्ध कराता है, जिसमें तिथि, नक्षत्र, योग, करण, वार, मास, व्रत और त्योहारों की दुर्लभ जानकारी शामिल है। इसके अलावा, यह धार्मिक कार्यों, व्रत और साधना के लिए 30 अलग-अलग शुभ और अशुभ मुहूर्तों की जानकारी देता है, साथ ही अलार्म की सुविधा भी प्रदान करता है। यह ऐप वैदिक समय के साथ-साथ आधुनिक समय (GMT और IST), मौसम की जानकारी जैसे तापमान, हवा की गति और आर्द्रता को भी प्रदर्शित करता है। खास बात यह है कि यह 189 से अधिक वैश्विक भाषाओं में उपलब्ध है, जिससे इसे विश्व स्तर पर आसानी से उपयोग किया जा सकता है।
भारतीय संस्कृति का गौरवपूर्ण प्रतीक
विक्रमादित्य वैदिक घड़ी भारतीय परंपरा, वैदिक गणना और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अद्भुत मेल है। इसकी शुरुआत पहली बार 29 फरवरी 2024 को उज्जैन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई थी, जिसे देश-दुनिया में खूब सराहा गया। यह घड़ी भारत की प्राचीन काल गणना को पुनर्जनन देती है, जो विश्व की सबसे विश्वसनीय और वैज्ञानिक पद्धतियों में से एक मानी जाती है। यह न केवल समय को मापने का एक नया तरीका है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर को वैश्विक मंच पर ले जाने का एक प्रयास भी है।