पटना
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में राज्य का सर्वांगीण विकास हो रहा है। राज्य सरकार की दूरदर्शी योजनाओं ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के साथ-साथ जल संरक्षण और आजीविका संवर्धन को भी एक नई दिशा दी है। गांवों में निर्मित अमृत सरोवर अब महज जलाशय नहीं, बल्कि समग्र विकास के केंद्र में तब्दील हो रहे हैं। इन सरोवरों के माध्यम से एक ओर जहां वर्षा के जल के संचयन से फसलों की सिंचाई की जा रही है, वहीं इन सरोवरों में मछली पालन से जीविका दीदियों के लिए रोजगार के नए अवसर भी सृजित हो रहे हैं।
राज्य सरकार द्वारा जीविका दीदियों को प्रतिवर्ष 5,000 रुपये की सहायता राशि दी जा रही है, जिससे वे अमृत सरोवरों में मछली पालन कर अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बना रही हैं। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी भी सशक्त रूप से सामने आ रही है। 15वें वित्त आयोग के टाइड फंड की 30 प्रतिशत राशि से राज्य की ग्राम पंचायतों में पंचायती राज प्रतिनिधियों एवं पदाधिकारियों की देखरेख में इन सरोवरों का निर्माण किया गया है। प्रत्येक नए सरोवर का क्षेत्रफल 2 एकड़, 30 डिसमिल निर्धारित किया गया है। इससे भूजल के स्तर में सुधार हुआ है और लोगों को स्थानीय जल संकट से राहत मिली है।
इन सरोवरों के चारों ओर मियाकायी (जर्मन) पद्धति से बरगद और पीपल जैसे छायादार वृक्षों के पौधे लगाए जा रहे हैं। जिससे लोगों को गरमी से तो राहत मिल ही रही है, साथ ही शाम के समय सरोवरों के किनारे लोग अपने परिवार के साथ समय भी गुजार रहे हैं। गौरतलब है कि अब तक राज्य में कुल 2,613 अमृत सरोवरों का विकास किया जा चुका है, जिसकी जानकारी भारत सरकार के पोर्टल https://amritsarovar.gov.in/ पर उपलब्ध है। ये सरोवर सौंदर्यीकरण, जल प्रबंधन, मखाना उत्पादन, स्थानीय पर्यटन और रोजगार सृजन में भी अहम भूमिका निभा रहे हैं।
गांवों को जलसंकट का नहीं करना होगा सामना
राज्य के गांवों में रहने वाले लोगों को स्वच्छ जल के संकट का सामना न करना पड़े, इसके लिए जल-जीवन-हरियाली अभियान के अंतर्गत ग्राम पंचायतों में पारंपरिक जलस्रोतों के संरक्षण और संवर्धन को प्राथमिकता दी जा रही है। अबतक राज्य की विभिन्न पंचायतों में 25,262 सार्वजनिक कुओं का जीर्णोद्धार तथा 18,526 सोख्ता निर्माण कार्य संपन्न हो चुका है।
इस अभियान का उद्देश्य ग्रामीण स्तर पर भूजल रिचार्ज को बढ़ावा देना और जल के सतत उपयोग को सुनिश्चित करना है। वित्तीय दृष्टिकोण से यह योजना 15वीं वित्त आयोग द्वारा उपलब्ध कराई गई राशि से संचालित की जा रही है। इसके अंतर्गत न केवल सार्वजनिक जलस्रोतों का पुनरुद्धार किया जा रहा है, बल्कि पंचायत सरकार भवनों, जिला पंचायत संसाधन केंद्रों तथा अन्य सरकारी भवनों में वर्षाजल संचयन संरचनाओं का निर्माण भी सुनिश्चित किया गया है।
भवन निर्माण विभाग की ओर से वर्षाजल संचयन के लिए दो मॉडल प्राक्कलन उपलब्ध कराए गए हैं। इसमें 'सैंडी सॉयल' के लिए 65,600 रुपए और 'अदर दैन सैंडी सॉयल' के लिए 95,000 रुपए की अनुमानित लागत है। पंचायती राज विभाग के अधीन सभी सरकारी भवनों में कम से कम एक वर्षाजल संचयन संरचना का निर्माण अनिवार्य रूप से किया गया है। बिना इस प्रावधान के कोई भी प्राक्कलन विभागीय स्वीकृति प्राप्त नहीं कर सकता। साथ ही, जिन त्रिस्तरीय पंचायत भवनों में अभी तक वर्षाजल संचयन की व्यवस्था नहीं की गई है, उनके लिए ग्राम पंचायत विकास योजना, प्रखंड पंचायत विकास योजना तथा जिला पंचायत योजना के अंतर्गत नई योजनाएं बनाकर संरचना निर्माण के निर्देश जारी किए गए हैं।
यह पहल न केवल जलसंकट से निपटने की दिशा में एक ठोस कदम है, बल्कि जल संरक्षण की संस्कृति को भी ग्राम स्तर पर मजबूत करने में सहायक सिद्ध हो रही है। पंचायती राज विभाग का यह प्रयास जल-जीवन-हरियाली अभियान को जमीनी स्तर पर प्रभावशाली रूप देने की दिशा में एक अनुकरणीय उदाहरण है।