नई दिल्ली
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले के हालिया बयान पर कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। दीक्षित ने आरएसएस पर आधे-अधूरे ज्ञान के आधार पर बयानबाजी करने का आरोप लगाया और 1975 में आपातकाल के दौरान आरएसएस के रुख को लेकर सवाल उठाए। संदीप दीक्षित ने कहा, "आरएसएस के पास हमेशा आधी-अधूरी जानकारी होती है। इधर-उधर की बात करना उनकी पुरानी आदत है। वे पहले देश में विद्रोह, प्रधानमंत्री आवास को घेरने और सरकार को काम न करने देने की बात करते थे। फिर उन्होंने आपातकाल का स्वागत क्यों किया? आरएसएस के तत्कालीन प्रमुख बाला साहब देवरस ने तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर आपातकाल के फैसले की तारीफ की थी। उनके तमाम नेताओं ने तारीफ की थी।"
दीक्षित ने आगे 1977 में जनता पार्टी की सरकार के दौरान संविधान के 42वें संशोधन में 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द को हटाने की संभावना पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा, "जब जनता पार्टी सत्ता में आई, तब जनसंघ भी उनके साथ था। उन्होंने 42वां संशोधन किया। उनके पास 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द को संविधान से हटाने का मौका था, लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया?" कांग्रेस नेता ने संविधान के अनुच्छेद 15 का जिक्र करते हुए कहा, "अनुच्छेद 15 या अन्य किसी भी प्रावधान के तहत यह नियम है कि कोई भी सरकार धर्म या किसी अन्य आधार पर किसी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं करेगी। धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत संविधान में पहले से ही मौजूद था, भले ही इसे बाद में प्रस्तावना में जोड़ा गया। अगर आरएसएस को इसका अर्थ समझ नहीं आता, तो इसमें कोई क्या कर सकता है?" यह विवाद दत्तात्रेय होसबाले के उस बयान के बाद शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने संविधान और धर्मनिरपेक्षता को लेकर टिप्पणी की थी।
संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए शब्दों "धर्मनिरपेक्ष", "समाजवादी" की समीक्षा होनी चाहिए: आरएसएस
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों की समीक्षा करने का आह्वान करते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि इन्हें आपातकाल के दौरान शामिल किया गया था और ये कभी भी बीआर आंबेडकर द्वारा तैयार संविधान का हिस्सा नहीं थे। आपातकाल पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने कहा, ‘‘बाबा साहेब आंबेडकर ने जो संविधान बनाया, उसकी प्रस्तावना में ये शब्द कभी नहीं थे। आपातकाल के दौरान जब मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए, संसद काम नहीं कर रही थी, न्यायपालिका पंगु हो गई थी, तब ये शब्द जोड़े गए।"
उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर बाद में चर्चा हुई लेकिन प्रस्तावना से उन्हें हटाने का कोई प्रयास नहीं किया गया। होसबाले ने कहा, ‘‘इसलिए उन्हें प्रस्तावना में रहना चाहिए या नहीं, इस पर विचार किया जाना चाहिए।’’ होसबोले ने कहा, "प्रस्तावना शाश्वत है। क्या समाजवाद के विचार भारत के लिए एक विचारधारा के रूप में शाश्वत हैं?" वरिष्ठ आरएसएस पदाधिकारी ने दोनों शब्दों को हटाने पर विचार करने का सुझाव ऐसे समय दिया जब उन्होंने कांग्रेस पर आपातकाल के दौर की ज्यादतियों के लिए निशाना साधा और पार्टी से माफी की मांग की। पच्चीस जून 1975 को घोषित आपातकाल के दिनों को याद करते हुए होसबाले ने कहा कि उस दौरान हजारों लोगों को जेल में डाल दिया गया और उन पर अत्याचार किया गया, वहीं न्यायपालिका और मीडिया की स्वतंत्रता पर भी अंकुश लगाया गया।
आरएसएस ने संविधान को कभी पूरी तरह स्वीकार नहीं किया: कांग्रेस
कांग्रेस ने संविधान की प्रस्तावना में ‘‘समाजवादी’’ और ‘‘धर्मनिरपेक्ष’’ शब्दों की समीक्षा करने संबंधी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले के बयान को लेकर शुक्रवार को दावा किया कि आरएसएस ने भारतीय संविधान को कभी भी पूरी तरह स्वीकार नहीं किया। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह भी कहा कि पिछले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का पूरा प्रचार अभियान भी संविधान बदलने पर केंद्रित था, लेकिन जनता ने इसे खारिज कर दिया।
रमेश ने 'एक्स' पर पोस्ट किया, "आरएसएस ने कभी भी भारत के संविधान को पूरी तरह स्वीकार नहीं किया। इसने 30 नवंबर, 1949 के बाद से डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, जवाहरलाल नेहरू और इसके निर्माण में शामिल अन्य लोगों पर निशाना साधा। आरएसएस के अपने शब्दों में संविधान मनुस्मृति से प्रेरित नहीं था।" उन्होंने दावा किया कि आरएसएस और भाजपा ने बार-बार नए संविधान का आह्वान किया है। रमेश ने कहा, "2024 के लोकसभा चुनाव में यही प्रधानमंत्री मोदी का चुनावी नारा था। लेकिन भारत की जनता ने इस नारे को निर्णायक रूप से खारिज कर दिया। फिर भी, संविधान के मूल ढांचे को बदलने की मांग लगातार आरएसएस के तंत्र द्वारा की जाती रही है।