नई दिल्ली
तीन साल पहले तक फिलीपींस में यौन रिश्तों के लिए सहमति की उम्र महज 12 साल थी. ईसाई देश में यौन शोषण का ग्राफ इतना ऊपर पहुंच गया कि हर पांच में से एक बच्चा एक्सट्रीम हालात का शिकार होने लगा. भारी हंगामों के बाद आखिरकार साल 2022 में इसे बढ़ाते हुए 16 कर दिया गया. जापान में भी यौन संबंधों पर सहमति की उम्र 13 साल थी, जिसे कुछ वक्त पहले ही बढ़ाया गया. क्या वजह है कि बाकी देश एज ऑफ कंसेंट को बढ़ा रहे हैं और क्यों हमारे यहां इसे घटाने की चर्चा हो रही है?
फिलीपींस, दुनिया के उन गिने-चुने देशों में रहा है जहां यौन सहमति की उम्र बेहद कम, केवल 12 साल थी. साल 1930 से वहां यही नियम रहा. असल में इससे पहले ये देश अमेरिकी कॉलोनी था. उसके बाद पीनल कोड रिवाइज हुआ. उस दौर के लोग मानते थे कि 12 साल की उम्र बचपन से युवावस्था की तरफ बढ़ने वाली उम्र है और लड़की शादी के लिए तैयार हो सकती है.
धर्म का भी रहा एंगल
ये कैथोलिक-बहुल देश है चर्च का मानना रहा कि शादी के बाद ही यौन संबंध बनना चाहिए. यही वजह है कि लड़कियों की जल्दी शादियां होने लगीं और उम्र बढ़ाने को लेकर गंभीर बहस नहीं हो सकी. अस्सी के दशक में पहली बार महिला अधिकारों की बात शुरू हुई लेकिन तब भी सरकार इस मुद्दे पर चुप रही. चूंकि चर्च गर्भनिरोधक और यौन शिक्षा के विरोध में रही तो एज ऑफ कंसेंट बढ़ाने की मांग दबी ही रही.
क्या नुकसान दिखने लगा
टीन-एज प्रेग्नेंसी लगातार बढ़ने लगी. कोई वयस्क 13 या 14 साल की लड़की के साथ संबंध बनाकर भी साफ बच निकलता था. अब शादियां तो नहीं हो रही थीं, लेकिन रेप बढ़ रहे थे. नतीजा ये हुआ कि लाखों लड़कियां नाबालिग लड़कियां मां बन गईं. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट कहती है कि फिलीपींस दक्षिण-पूर्व एशिया में टीन-एज प्रेग्नेंसी कैपिटल बन चुका था. खुद स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि साल 2020 में हर दिन लगभग 500 बच्चियां गर्भवती हो रही थीं. उनके स्कूल छूट गए और जिंदगी ठहर गई.
यूएन एजेंसियां लगातार दबाव बनाने लगीं कि फिलीपींस अपना नियम बदले. साल 2021 में यूएन की कमेटी ऑन द राइट्स ऑफ द चाइल्ड ने साफ कहा कि 12 साल में कंसेंट इंटरनेशनल मानकों के खिलाफ है. अब देश पर प्रेशर था कि उसने बात न सुनी तो मुश्किल पड़ सकती है. मातृत्व और शिशु मृत्यु दर भी बढ़ चुकी थी. तब तक 9 दशक बीत चुके थे. अब जाकर फिलीपींस को लगा कि यह कानून न सिर्फ पुराना है, बल्कि खतरनाक भी है. 12 साल की उम्र को कानूनी सहमति मानना असल में अपराधियों को बचने का रास्ता देना था. साल 2022 में इसे बढ़ाते हुए 16 साल किया गया.
विकसित देश जापान के हाल भी अलग नहीं रहे
वहां का क्रिमिनल कोड 1907 से चला आ रहा था, जिसमें सहमति की उम्र 13 साल तय थी. इसका मतलब यह था कि कानूनन 13 साल की बच्ची भी यौन संबंध के लिए सहमति दे सकती थी. अगर कोई मामला अदालत में जाता, तो यौन अपराधी झूठ बोलकर बच निकलता था.
यहां तक कि वहां रेप की परिभाषा तक बहुत सीमित थी. कानून कहता था कि बलात्कार तभी माना जाएगा जब जबरन यौन संबंध बनाया गया हो. पीड़िता को साबित करना पड़ता था कि उसने पूरी ताकत से विरोध किया, लेकिन फिर भी खुद को बचा नहीं पाई. अगर लड़की डर गई, चुप रही, या विरोध करने की स्थिति में न हो तो कोर्ट मान लेती थी कि ये रेप नहीं, सहमति है.
वैसे जापान में टीन-एज प्रेग्नेंसी उतनी ज्यादा नहीं थी जितनी फिलीपींस में, लेकिन छोटी बच्चियों का ऑनलाइन शोषण तेज हो चुका था. अपराधी जानते थे कि वे बच निकलेंगे. साल 2020 के समय वहां यौन अपराधों के खिलाफ भारी प्रोटेस्ट हुए. यूएन ने भी दबाव डाला कि वो सहमति की उम्र को ग्लोबल मानकों के आसपास लाए. आखिरकार दो साल पहले जापान की संसद ने नया कानून पास किया, जिसमें सहमति की उम्र 13 से बढ़ाकर 16 साल कर दी गई. साथ ही, नशे में या दबाव में बनाए गए संबंधों को रेप की कैटेगरी में डाला गया.
16 साल में कितना विकसित हो पाता है मस्तिष्क
अब कई देश कंसेंट की आयु 16 से बढ़ाते हुए 18 तक जाने की सोच रहे हैं, वहीं भारत में इसे कम करने की बात हो रही है. इस पक्ष की दलील है कि कई बार टीन-एजर्स रोमांटिक रिश्ते में होते हैं लेकिन उम्र की वजह से इसे भी रेप की श्रेणी में डाल दिया जाता है और लड़कों को कड़ी सजा मिलती है.
हालांकि इसका दूसरा पहलू ज्यादा गंभीर है. 16 साल की उम्र में बच्चे शारीरिक तौर पर तो बड़े हो चुके होते हैं लेकिन ब्रेन अभी पूरी तरह डेवलप नहीं हुआ होता. खासकर, प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स,जो फैसला लेने, जोखिम समझने और भावनाओं को कंट्रोल करने का काम करता है, वो पूरी तरह बना ही नहीं होता. यानी इस उम्र के लोग इमोशनली तैयार नहीं हो सकते कि वे पूरी समझदारी से यौन संबंध बनाएं.
हो सकता है कि इसके बाद वो गिल्ट ट्रिप पर चला जाए, डिप्रेशन का शिकार हो जाए या लगातार गलत रिश्तों में फंसता चला जाए. अगर एक पार्टनर बड़ी उम्र का हो तो दूसरा कम उम्र के चलते प्रेशर का शिकार भी हो सकता है. पढ़ाई छूटती है, सो अलग. यही वजह है कि सेंटर खुद मौजूदा आयु सीमा को बनाए रखने पर जोर दे रहा है.