तिरुअनंतपुरम
केरल हाई कोर्ट ने मेंटनेंस के एक केस की सुनवाई के दौरान अहम फैसला दिया। अदालत ने कहा कि वैवाहिक संबंधों में व्यभिचार की बात परिस्थितिजन्य साक्ष्यों से ही साबित की जा सकती है। जस्टिस कौसर ईदप्पागथ ने कहा कि सीआरपीसी के सेक्शन 125 के तहत मेंटनेंस का केस सिविल नेचर का है। यदि पति यह कह रहा है कि उसकी पत्नी के विवाहेतर संबंध हैं और वह व्यभिचार में शामिल हैं तो उसकी ओर से दिए गए परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर ही कुछ तय करना होगा। ऐसे मामलों में पक्के सबूत कहां मिलते हैं। ऐसा होना तो दुर्लभ ही होता है।
अदालत ने कहा, 'पति जब यह आरोप लगाता है कि उसकी पत्नी व्यभिचार में शामिल है और इसलिए वह मेंटनेंस की हकदार नहीं हैं तो ऐसी स्थिति में यदि वह परिस्थितिजन्य सबूत देता है तो वही पर्याप्त होगा। आमतौर पर ऐसी चीजें तो पूरी गोपनीयता और सीक्रेसी के साथ होती हैं। ऐसे मामलों में पक्के सबूत मिल पाना तो दुर्लभ ही होता है। ऐसी स्थिति में व्यभिचार को परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के माध्यम से ही साबित किया जा सकता है। इसलिए यदि ऐसे कोई सबूत मुहैया कराए जाएं तो उसके आधार पर ही किसी निर्णय तक पहुंचना होता है।'
अदालत ने यह फैसला एक शख्स की याचिका पर दिया, जिसने फैमिली कोर्ट के आदेश को चैलेंज किया था। फैमिली कोर्ट ने आदेश दिया था कि वह अपनी तलाकशुदा पत्नी को मासिक गुजारा भत्ता दे। इसी को चैलेंज देते हुए शख्स ने हाई कोर्ट का रुख किया। पति का कहना था कि यदि मेरी मेरी पत्नी किसी और के साथ है और व्यभिचार में शामिल है तो फिर वह गुजारा भत्ता की हकदार नहीं है।
क्या था फैमिली कोर्ट का आदेश, जिसे HC में मिली चुनौती
हालांकि फैमिली कोर्ट ने शख्स की अपील को खारिज कर दिया था और उसे आदेश दिया था कि वह पत्नी को हर महीने 7,500 रुपये का गुजारा भत्ता दे। इस फैसले को हाई कोर्ट में पति ने चुनौती दी। उसके वकील ने कहा कि यदि महिला किसी और के साथ है तो वह गुजारा भत्ता की हकदार नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि मेरे मुवक्किल ने इस बात के पर्याप्त सबूत मुहैया कराए हैं कि वह किसी और के साथ है और व्यभिचार में शामिल है।


