इस्लामाबाद
पाकिस्तान में अब मुसलमानों को भी प्रताड़ित किया जाने लगा है। अहमदिया समुदाय को ईद-उल-अजहा के मौके पर कम से कम सात शहरों में नमाज अदा करने और कुर्बानी देने से रोक दिया गया। जमात-ए-अहमदिया पाकिस्तान (JAP) ने मंगलवार को यह जानकारी दी। समुदाय ने आरोप लगाया कि धार्मिक उग्रवादियों और स्थानीय प्रशासन की मिलीभगत से यह उत्पीड़न किया गया। JAP के अनुसार, पंजाब पुलिस ने दो अहमदियों को गिरफ्तार किया और तीन के खिलाफ देश के विवादास्पद ईशनिंदा कानून (सेक्शन 298-सी) के तहत केस दर्ज किया गया। आरोप है कि वे परंपरागत कुर्बानी देने की कोशिश कर रहे थे, जिसे पाकिस्तान में अहमदियों के लिए प्रतिबंधित किया गया है।
अहमदियों को जिन शहरों में ईद की नमाज पढ़ने से रोका गया, उनमें खुशाब, मीरपुर खास, लोधरां, भक्कर, राजनपुर, उमरकोट, लरकाना और कराची शामिल हैं। JAP का कहना है कि इन शहरों में स्थानीय प्रशासन और तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) जैसे कट्टरपंथी संगठनों ने मस्जिदों तक में समुदाय को नमाज नहीं पढ़ने दी। लाहौर में स्थित गढ़ी शाही की सबसे पुरानी अहमदिया इबादतगाह को ईद के दिन पुलिस ने TLP के दबाव में सील कर दिया।
जबरन कलमा पढ़वाकर धर्म परिवर्तन का दावा
कराची के नाजिमाबाद इलाके में एक चौंकाने वाली घटना में TLP कार्यकर्ताओं ने अहमदिया समुदाय के इरफान-उल-हक और उनके बेटे को उनके कुर्बानी के जानवर समेत पुलिस थाने ले जाकर धमकाया। जेएपी ने कहा, "जान बचाने के लिए उन्हें कलमा पढ़ने को मजबूर किया गया, जिसके बाद TLP ने इसे 'धर्म परिवर्तन' कहकर जश्न मनाया और उन्हें माला पहनाई।"
पुलिस की दलील और JAP का विरोध
पंजाब पुलिस ने पुष्टि की कि उन्होंने दो अहमदियों को गिरफ्तार किया और तीन के खिलाफ कार्रवाई की। पुलिस ने कहा, "298-C के तहत अहमदियों को इस्लामी रस्में निभाने की इजाजत नहीं है।" वहीं, जमात-ए-अहमदिया ने इस कदम को न सिर्फ भेदभावपूर्ण बल्कि संविधान के खिलाफ बताया।
उन्होंने कहा, "पाकिस्तान के संविधान का अनुच्छेद 20 हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, लेकिन अहमदियों को यह अधिकार नहीं दिया जा रहा।"
यह घटना ऐसे समय पर हुई है जब अहमदिया समुदाय पर हमलों की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। मई में एक वरिष्ठ अहमदिया डॉक्टर की हत्या की गई थी और पंजाब में 100 से अधिक अहमदिया कब्रों को अपवित्र किया गया था। 1974 में पाकिस्तान की संसद ने अहमदियों को "गैर-मुस्लिम" घोषित किया था और 1984 में उनके लिए इस्लामिक प्रतीकों और रिवाजों का पालन करना भी गैरकानूनी बना दिया गया।
मानवाधिकार संकट
JAP ने कहा, "कट्टरपंथी संगठनों का बढ़ता दुस्साहस हमारे समुदाय की सुरक्षा के लिए खतरा बन गया है। जबरन धर्मांतरण और धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन हैं।"