रायपुर
राज्य सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) की अवधि एक वर्ष बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा है। प्रस्ताव में योजना को 26 दिसंबर 2026 तक विस्तारित करने का अनुरोध किया गया है, जिसे लेकर मंजूरी मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।
राज्य पर विशेष प्रभाव नहीं
अधिकारियों का कहना है कि यदि योजना बंद भी होती है, तो राज्य पर इसका विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि अधिकांश आवासों का कार्य प्रारंभ हो चुका है। वर्तमान स्थिति में योजना के तहत स्वीकृत कुल आवासों में से केवल 481 आवासों का निर्माण कार्य अब तक शुरू नहीं हो पाया है, जबकि 25,758 आवास प्रगतिरत हैं।
यदि नगर निगम और नगर पालिकाएं प्रगतिरत आवासों का निर्माण 31 दिसंबर 2025 तक पूर्ण कर उसका क्लेम प्रस्तुत करती हैं, तो संबंधित राशि जारी कर दी जाएगी। योजना के अंतर्गत घटक लाभार्थी आधारित व्यक्तिगत आवास निर्माण (बीएलसी) के तहत 2,06,118 और भागीदारी में किफायती आवास निर्माण (एएचपी) के तहत 27,475 आवास स्वीकृत किए गए थे।
2,17,022 आवास पूरे
दोनों घटकों के तहत स्वीकृत आवासों में से 2,17,022 आवास पूरे कर लिए गए हैं। कुल मिलाकर 89 प्रतिशत आवास पूर्ण किए जा चुके हैं।
नगरीय प्रशासन विभाग को नवंबर में केंद्रीय आवासन व शहरी कार्य मंत्रालय से पत्र प्राप्त हुआ था, जिसमें उल्लेख किया गया था कि पीएम आवास योजना (शहरी) की अवधि दिसंबर 2025 में समाप्त हो रही है। पत्र में यह भी स्पष्ट किया गया था कि अप्रारंभ आवासों के लिए किसी प्रकार की राशि जारी नहीं की जाएगी और ऐसे आवासों को दिसंबर 2025 तक पूर्ण किया जाना संभव नहीं होने की स्थिति में निर्माण कार्य शुरू न किया जाए।
केंद्र से मिले निर्देशों के आधार पर नगरीय प्रशासन विभाग ने सभी नगरीय निकायों को आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किए थे। साथ ही, राज्य सरकार की ओर से योजना की समयावधि बढ़ाने के लिए केंद्र को प्रस्ताव भेजा गया है, ताकि प्रगतिरत आवासों का निर्माण पूरा कराया जा सके।
आवासों की स्थिति
घटक का नाम- स्वीकृत- पूर्ण – प्रगतिरत – अप्रारंभ
बीएलसी- 2,06,118 – 1,89,547 – 16,264 – 307
एएचपी- 37,143 – 27,475 – 9,494 – 174
छत्तीसगढ़ में इंतजार की लंबी कतार
राजस्थान के दौसा जिले में नवल किशोर मीणा और संतोष मीणा पिछले सात साल से अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं. कड़ाके की ठंड में यह परिवार खेतों के बीच तिरपाल और बांस-बल्लियों के सहारे जिंदगी गुजार रहा है. जिला कलेक्टर का कहना है कि तकनीकी कारणों से मकान नहीं मिल पाए हैं.
वहीं, छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में अनु जैसी महिलाएं फॉर्म भरकर सालों से बैठी हैं, उन्हें पीएम मोदी के वादे पर भरोसा तो है, लेकिन सिस्टम की सुस्ती से उनके पक्के घर की उम्मीद अब दम तोड़ रही है.
पंजाब में अधिकारियों की गलती का भारी खामियाजा
पंजाब के फरीदकोट में प्रशासन की एक गलत सलाह ने गरीबों को सड़क पर ला दिया है. नगर पालिका ने 284 परिवारों से कहा कि अगर योजना का लाभ चाहिए तो पुराने मकान तोड़ने होंगे. लोगों ने पैसे की उम्मीद में अपने आशियाने उजाड़ दिए, लेकिन अब अधिकारी वेरिफिकेशन में गलती की दलील देकर राशि देने से इनकार कर रहे हैं. आज ये परिवार धर्मशालाओं में रहने को मजबूर हैं और अपने हक के लिए नगर पालिका के बाहर धरना दे रहे हैं. सात करोड़ से अधिक की राशि अब भी अधर में है.
हरियाणा और महाराष्ट्र में अटकी दूसरी किस्त
हरियाणा के करनाल में श्यामलाल जैसे लाभार्थियों ने पहली किस्त मिलने के बाद उधार लेकर मकान का काम शुरू करवाया, लेकिन दूसरी किस्त साल भर से नहीं आई. अब वे आधे-अधूरे घर को छोड़कर दूसरों के मकानों में किराए पर रह रहे हैं. महाराष्ट्र के पुणे में भी देवराम कडाले को दो साल पहले अर्जी देने के बाद सिर्फ 85 हजार रुपये मिले हैं, जबकि डेढ़ लाख का वादा था. देश के कई हिस्सों में लाभार्थी अफसरों के चक्कर काटकर थक चुके हैं, पर उनकी सुनवाई नहीं हो रही है.
सिस्टम के पेच में फंसा गरीबों का आशियाना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संकल्प है कि जब तक हर गरीब को पक्का घर नहीं मिल जाता, वे रुकने वाले नहीं हैं. उन्होंने पिछले 11 साल में 4 करोड़ घर बनाने और अगले 3 करोड़ नए घर बनाने का टारगेट रखा है. हालांकि, आजतक की पड़ताल बताती है कि सरकारी बाबू और फंड की कमी इस नेक योजना के रास्ते में रोड़ा बन रहे हैं. जब तक ग्राउंड लेवल पर किस्तों का भुगतान समय पर नहीं होगा और भ्रष्टाचार कम नहीं होगा, तब तक गरीबों की किस्मत नहीं बदलेगी.


