भोपाल
भारतीय परम्परा में खेल, सामाजिक प्रबंधन और जीवन पद्धति का अभिन्न अंग था। हमारे पूर्वजों ने खेलों को हजारों वर्षों पूर्व स्थापित किया था और अतीत के उन कालखंडों में हम खेलों के क्षेत्र में अग्रणी थे। खेल के परिप्रेक्ष्य में भारतीय दृष्टि व्यापक थी। भारतीय दृष्टि में खेल, केवल मनोरंजन नहीं बल्कि शारीरिक और बौद्धिक विकास के माध्यम होते थे। मनुष्य के समग्र विकास की दृष्टि से भारत में खेल खेले जाते थे। यह बात उच्च शिक्षा मंत्री श्री इंदर सिंह परमार ने शनिवार को भोपाल के बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के ज्ञान-विज्ञान भवन में क्रीड़ा भारती प्रदेश समिति द्वारा आयोजित "खेल सृष्टि-भारतीय दृष्टि" विषय पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ कर कही। मंत्री श्री परमार ने संगोष्ठी में "भारतीय दर्शन में खेलों के पुरातन इतिहास एवं वर्तमान परिप्रेक्ष्य में खेलों में भारतीय दृष्टि के महत्व" के आलोक में अपने विचार व्यक्त किए।
उच्च शिक्षा मंत्री श्री परमार ने कहा कि विश्व एक परिवार है। "वसुधैव कुटुंबकम्" का दृष्टिकोण विश्व को भारत की देन है। कोविड के संकटकाल में भारत ने आत्मानुशासन का पालन करते हुए, विश्व के विभिन्न देशों को निशुल्क वैक्सीन उपलब्ध करवाकर इसी दृष्टिकोण का सशक्त प्रमाण प्रस्तुत किया है। मंत्री श्री परमार ने कहा कि खेल के मैदानों से सेवा का संकल्प पूरा होगा। खेल से शरीर और मन स्वस्थ होता है और स्वस्थ मन से खिलाड़ी समाज में सेवा का संकल्प पूरा करेंगे और प्रेरणा का केंद्र बनेंगे। मंत्री श्री परमार ने संवेदना के साथ खेलों को आगे बढ़ाने और वैचारिक प्रवाह को सतत् जारी रखने का आह्वान भी किया।
उच्च शिक्षा मंत्री श्री परमार ने कहा कि राज्य सरकार ने विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में, परंपरागत खेलों का समावेश किया है। मंत्री श्री परमार ने कहा कि हर खेल की अपनी अलग दृष्टि होती है। उन्होंने तीरंदाजी का उदाहरण देकर कहा कि इस खेल में एकाग्रता की आवश्यकता होती है। यह तीरंदाजी के खेल की अपनी विशिष्ट दृष्टि है। मंत्री श्री परमार ने कहा कि समय के सापेक्ष हमने विभिन्न विदेशी खेलों को भी हमने अपनाया है, जो भारतीयता के साथ आत्मसात करने की सीख देता है। मंत्री श्री परमार ने कहा कि क्रीड़ा भारती "क्रीड़ा से निर्माण चरित्र का, चरित्र से निर्माण राष्ट्र का" के विचार को चरितार्थ कर रही है। मंत्री श्री परमार ने राष्ट्रीय संगोष्ठी के सफल आयोजन के लिए समिति को बधाई भी दी।
संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में क्रीड़ा भारती श्री अशोक अग्रवाल ने कहा कि खेल से राष्ट्रीय एकता एवं सामाजिक सद्भाव सुदृढ़ होता है। खेलों में भारतीय दृष्टि केंद्रित शुचिता एवं चरित्र निर्माण की आवश्यकता हैं। संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य स्वदेशी, पारम्परिक एवं ग्रामीण खेलों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास करना, खिलाड़ियों में खेल भावना, नैतिक आचरण और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के साथ खेल संस्कृति का विकास करना एवं खेलों के माध्यम से खिलाड़ी रूपी नागरिकों में भारतीय दृष्टि केंद्रित राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करना था। क्रीड़ा भारती प्रदेश समिति के अध्यक्ष श्री दीपक सचेती, राष्ट्रीय नियामक मंडल सदस्य श्री भीष्म सिंह राजपूत, बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. सुरेश कुमार जैन, कुलसचिव डॉ अनिल शर्मा एवं शारीरिक शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ आलोक मिश्रा सहित क्रीड़ा भारती के विभिन्न पदाधिकारीगण, खेल विधा से जुड़े विविध विषयविद, प्राध्यापकगण, क्रीड़ा अधिकारी एवं अन्य विद्वतजन उपस्थित थे।


