भोपाल
भोपाल की एक ही तहसील में 3 साल से जमे 33 पटवारियों को हटा दिया गया है। 4 राजस्व निरीक्षकों के भी तबादले किए गए हैं। इन्हें एक तहसील या हल्के से दूसरी तहसील में भेजा गया है। हालांकि, सांसद शर्मा ने जितने पटवारियों की लिस्ट कलेक्टर को सौंपी थी, उसमें से आधे भी नहीं हटाए गए हैं। कुल 183 पटवारी और RI (राजस्व निरीक्षक) की लिस्ट तैयार की गई थी।
कई 23 साल से एक ही तहसील में पदस्थ सांसद शर्मा ने पहले जो लिस्ट सौंपी थी, उस पर नजर डाली जाए तो ऐसे कई पटवारी ऐसे हैं, जिन्हें एक ही तहसील में 23 साल हो चुके हैं। इनमें पटवारी भगवत सिंह धनगर, नरेंद्र बचोतिया, योगेंद्र कुमार सक्सेना, धर्मेंद्र सिंह कुशवाह, नासिर उद्दीन, महेश कुमार बंकरिया, मनोहर सिंह राजपूत, नई अहमद, सदाशिव गौड़, रेणू पटेल, नीलिमा नागर, रमेश शर्मा, प्रदीप गौर, अर्चना भटनागर, जयेंद्र चंदेलकर, मंगलेश खंडेलवाल, मुकुल सराठे, प्रियंका सिलावट, दीक्षा शर्मा, अभिषेक शर्मा, अंकुर साहू, शिवाजी मिश्रा, आलोक इंदौरिया, प्रीति गुप्ता आदि के नाम सामने आए थे।
इनमें से कई के नाम मंगलवार को जारी हुई लिस्ट में भी है। बता दें कि सांसद ने हुजूर-बैरसिया तहसील के 84-84 और कोलार तहसील के 15 पटवारियों की लिस्ट दी थी। इन्हें 3 साल से ज्यादा अवधि एक ही तहसील या हल्के में हो गई। जानकारी के अनुसार, हुजूर तहसील में 104, बैरसिया तहसील में 103 और कोलार तहसील में 24 पटवारी हल्के है।
बीजेपी सांसद बोले थे- इनके कारण ऑफिस बदनाम हो रहा पिछले साल 20 सितंबर को प्रभारी मंत्री चैतन्य काश्यप ने भोपाल में पहली समीक्षा बैठक की थी। इसमें सांसद शर्मा ने उन्हें 3 साल या इससे अधिक समय से एक ही हल्के में जमे पटवारियों की लिस्ट सौंपी थी। उन्होंने कहा था कि भोपाल में सालों से कई RI और पटवारी एक ही हल्के में 8 से 15 साल से जमे हैं।
इनके कारण ऑफिस बदनाम होता है। उनकी शिकायतें भी मिलती हैं। उन्हें वल्लभ भवन के आला अफसरों का संरक्षण है। कइयों की जमीन है। उन्हें हटाने के लिए लिस्ट सौंपी है।
3 साल में हल्का बदलने का नियम भोपाल में करीब 222 पटवारी हैं। वहीं, राजस्व निरीक्षकों की संख्या लगभग 35 है। नियमानुसार 3 साल में पटवारी का हल्का बदल देना चाहिए। लेकिन भोपाल में कई तो एक ही हल्के में 8 साल या इससे ज्यादा समय से पदस्थ हैं। वहीं उन्हें तहसील में पदस्थ हुए 5 से 23 साल तक बीत चुके हैं।
बीच में हल्का बदलवाने के बाद वे फिर से पुराने हल्के में पदस्थ हो जाते हैं। बताया जाता है कि कई पटवारियों की शिकायत भी जनप्रतिनिधियों तक पहुंची थी। इस वजह से सांसद ने यह मुद्दा उठाया था।