नई दिल्ली (media saheb.com) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को ”मन की बात” के 53वें कड़ी में पद्म पुरस्कार की बात करते हुए कहा कि इस बार 12 पद्म पुरस्कार किसानों को दिए गए हैं। यह बदलते भारत की नई तस्वीर है। प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि यह 12 वो लोग हैं जो टीवी, अखबारों या मैग्जीनों के फ्रंट पेज पर नहीं बल्कि ”जमीनी स्तर” निष्काम भाव से पर काम कर रहे हैं। ये लोग गीता के सन्देश ‘योगः कर्मसु कौशलम’ को एक प्रकार से जीते हैं।
आज हम ‘नए भारत’ की ओर अग्रसर हैं। उन्होंने कहा कि मैं ऐसे ही कुछ लोगों के बारे में आपको बताना चाहता हूं। ओडिशा के दैतारी नायक के बारे में आपने जरुर सुना होगा उन्हें ‘कैनल मैन ऑफ द उडीसा’ यूं ही नहीं कहा जाता, दैतारी नायक ने अपने गांव में अपने हाथों से पहाड़ काटकर तीन किलोमीटर तक नहर का रास्ता बना दिया। अपने परिश्रम से सिंचाई और पानी की समस्या हमेशा के लिए ख़त्म कर दी। गुजरात के अब्दुल गफूर खत्री जी को ही लीजिए, उन्होंने कच्छ के पारंपरिक रोगन पेंटिंग को पुनर्जीवित करने का अद्भुत कार्य किया। वे इस दुर्लभ चित्रकारी को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का बड़ा कार्य कर रहे हैं।
अब्दुल गफूर द्वारा बनाई गई ‘ट्री ऑफ लाइफ’ कलाकृति को ही मैंने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा को उपहार में दिया था। पद्म पुरस्कार पाने वालों में मराठवाड़ा के शब्बीर सैय्यद गौ-माता के सेवक के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने जिस प्रकार अपना पूरा जीवन गौमाता की सेवा में खपा दिया ये अपने आप में अनूठा है। मदुरै चिन्ना पिल्लई वही शख्सियत हैं, जिन्होंने सबसे पहले तमिलनाडु में कलन्जियम आन्दोलन के जरिए पीड़ितों और शोषितों को सशक्त करने का प्रयास किया। साथ ही समुदाय आधारित लघु वित्तीय व्यवस्था की शुरुआत की।अमेरिका की ‘टाउ पोर्चन लिंच’ के बारे में सुनकर आप सुखद आश्चर्य से भर जाएंगे।लिंच आज योग की जीती-जागती संस्था बन गई है। सौ वर्ष की उम्र में भी वे दुनिया भर के लोगों को योग का प्रशिक्षण दे रही हैं। अब तक डेढ़ हज़ार लोगों को योग शिक्षक बना चुकी हैं।
झारखण्ड में ‘लेडी टार्जन’ के नाम से विख्यात जमुना टुडू ने टिम्बर माफिया और नक्सलियों से लोहा लेने का साहसिक काम किया उन्होंने न केवल 50 हेक्टेयर जंगल को उजड़ने से बचाया बल्कि दस हज़ार महिलाओं को एकजुट कर पेड़ों और वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए प्रेरित किया। ये जमुना जी के परिश्रम का ही प्रताप है कि आज गांववाले हर बच्चे के जन्म पर 18 पेड़ और लड़की की शादी पर 10 पेड़ लगाते हैं। गुजरात की मुक्ताबेन पंकज कुमार दगली की कहानी आपको प्रेरणा से भर देगी, खुद दिव्यांग होते हुए भी उन्होंने दिव्यांग महिलाओं के उत्थान के लिए जो कार्य किए, ऐसा उदाहरण मिलना मुश्किल है। चक्षु महिला सेवाकुन्ज नाम की संस्था की स्थापना कर वे नेत्रहीन बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के पुनीत कार्य में जुटी हैं। बिहार के मुजफ्फरपुर की किसान चाची, यानि राजकुमारी देवी की कहानी बहुत ही प्रेरक है।
महिला सशक्तिकरण और खेती को लाभकारी बनाने की दिशा में उन्होंने एक मिसाल पेश की है। किसान चाची ने अपने इलाके की 300 महिलाओं को ‘स्वंय सहायता समूह’ से जोड़ा और आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने गांव की महिलाओं को खेती के साथ ही रोज़गार के अन्य साधनों का प्रशिक्षण दिया। खास बात यह है कि उन्होंने खेती के साथ तकनीकी को जोड़ने का काम किया। हि.स.