(mediasaheb.com) पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ, जिन्हें एक तानाशाह के तौर पर ज्यादा जाना जाता है को राजद्रोह के मामले में दोषी करार देते हुए पाकिस्तान की विशेष अदालत ने मौत की सजा सुनाई है। मुशर्रफ पर पाकिस्तान की तत्कालीन मुस्लिम लीग (नवाज) सरकार ने 03 नवम्बर 2007 को आपातकाल लगाने के साथ-साथ देशहित के विरुद्ध लिए गए फैसलों को लेकर 2013 में देशद्रोह (#Deshdroh ) का केस दर्ज कराया गया था। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और सैन्य प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ (#Parvez Musharraf ) का जन्म 11 अगस्त, 1943 को भारत(#Bharat ) की राजधानी दिल्ली (#Rajdhani Delhi ) के दरियागंज में हुआ था। भारत-पाकिस्तान(#India- Pakisthan ) विभाजन के समय उनका परिवार कराची(#Karachi ) जाकर बस गया। मुशर्रफ के पिता सैयद मुशर्रफ पाकिस्तानी विदेश सेवा में थे। उनकी मां जरीन ने भी 1947 के भारत-पाक विभाजन के बाद यूनाइटेड नेशन के लिए काम किया। उनका परिवार 1949 से 1956 तक तुर्की में रहा। मुशर्रफ की शुरुआती शिक्षा कराची के सेंट पैट्रिक स्कूल में और फिर लाहौर के कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई हुई। 1961 में परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान मिलिट्री अकादमी में शामिल हो गए।
उनकी काबिलियत को देखते हुए सेना में लगातार उनका कद बढ़ता चला गया। मुशर्रफ ने 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान की ओर से भारत के खिलाफ लड़ाई भी लड़ी।1998 में मुशर्रफ पाकिस्तान आर्मी के चीफ बने और 1999 में नवाज शरीफ सरकार का तख्ता पलटकर वह पाकिस्तान (#Pakisthan ) के सैन्य प्रमुख बन बैठे। मई 2000 में पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने पाकिस्तान में चुनाव कराए जाने के आदेश दिए, लेकिन जून 2001 में तत्कालीन राष्ट्रपति रफीक तरार को हटाकर वे खुद राष्ट्रपति बन बैठे। अप्रैल 2002 में उन्होंने राष्ट्रपति बने रहने के लिए जनमत-संग्रह कराया जिसका अधिकतर राजनीतिक दलों ने बहिष्कार किया। लेकिन अक्टूबर 2002 में हुए चुनावों में मुशर्रफ समर्थित पार्टी मुत्ताहिदा मजलिस-ए-अमाल को बहुमत मिल गया। इसके बाद तो मानों मुशर्रफ की किस्मत के दरवाजे ही खुल गए। उन्होंने जमकर मनमानी की और पाकिस्तान के संविधान में कई बदलाव करवा डाले।
इस कदम के बाद उनके तख्ता-पलट समेत अन्य कई फैसलों को वैधानिक रजामंदी मिल गई। 20 जून, 2001 से 18 अगस्त 2008 तक पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे मुशर्रफ के शासनकाल के दौरान भारत पर कई आतंकी हमले करवाए गए, लेकिन बाद में दोनों देशों के बीच शांति वार्ता कई बार आगे बढ़ी और टूटी। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के साथ आगरा में परवेज मुशर्रफ ने पाकिस्तान के राष्ट्राध्यक्ष के रूप में मुलाकात की। लेकिन इस मुलाकात का दोनों देशों के रिश्तों पर कोई खास असर नहीं पड़ा। दोनों के बीच होने वाला शांति समझौता रद्द हो गया। उनके तानाशाही शासन के चलते ही उन्हें 2005 में परेड पत्रिका ने दुनिया के 10 सबसे बुरे तानाशाहों की सूची में शामिल किया। मुशर्रफ की तानाशाही की एक नहीं, अनेक घटनाएं हैं, जिन्हें सुनकर और पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। ऐसी ही एक घटना है, जिसने पाकिस्तान के लोगों के गुस्से में उबाल ला दिया था। नवाब अकबर खान बुगती बलूचिस्तान प्रांत के एक राष्ट्रवादी नेता थे जो बलूचिस्तान को पाकिस्तान से अलग देश बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। उनकी आवाज दबाने के लिए साल 2006 में बलूचिस्तान के कोहलू जिले में एक सैन्य कार्रवाई के दौरान उनकी और उनके कई साथियों की बड़ी बेरहमी के साथ हत्या कर दी गई थी। इस अभियान का आदेश परवेज मुशर्रफ ने ही दिया था। बात यहीं खत्म नहीं होती। मुशर्रफ ने पाकिस्तान में 2007 में आपातकाल लागू कर दिया।
उस दौरान पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो(#Benjeer Bhutto ) की दिसम्बर 2007 में रावलपिंडी में एक चुनावी रैली के बाद आत्मघाती हमले में हत्या कर दी गई। मुशर्रफ पर उन्हें जरूरी सुरक्षा मुहैया न कराने के आरोप लगे। इस मामले में पाकिस्तान की सभी सियासी पार्टियों ने मुशर्रफ के खिलाफ मोर्चा भी खोला था। लेकिन, चूंकि मुशर्रफ देश के सैन्य प्रमुख और राष्ट्रपति दोनों पदों पर काबिज थे, तो जल्द ही विपक्ष की आवाज दबा दी गई। मुशर्रफ की क्रूरता के कई और किस्से भी सुनने और देखने को मिलते हैं। उनके दिए दर्द को आज भी हजारों पाकिस्तानी भूल नहीं पाए हैं। मुशर्रफ के आदेश पर साल 2007 में देश की लाल मस्जिद पर सैन्य कार्रवाई की गई, जिसमें करीब 90 छात्रों की मौत हो गई।परवेज मुशर्रफ सत्ता के नशे में इस कदर तक चूर थे कि अपने खिलाफ आवाज उठाने वालों का सिर कुचलने में वे देर नहीं लगाते थे। देश के कानून को भी उन्होंने अपने हाथ की कठपुतली बना लिया था। 9 मार्च, 2007 को उन्होंने शीर्ष न्यायाधीश इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी को जबरन पदमुक्त कर दिया। उनके इस कदम के खिलाफ पूरे पाकिस्तान में वकीलों ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। हालांकि सत्ता की धौंस में मुशर्रफ ने उनके आंदोलन को कुचल दिया था।
कहते हैं कि पाप का घड़ा जब भर जाता है तो वो फूटता जरूर है। परवेज मुशर्रफ के साथ भी आखिरकार यही हुआ। बेनजीर भुट्टो और अकबर खान बुगती की हत्या और फिर लाल मस्जिद पर कार्रवाई के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। आपातकाल के दौरान जजों को हिरासत में लिए जाने के मामले में भी उन पर केस चलाया गया। 2013 में नवाज शरीफ सरकार ने उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से अपील की। पाकिस्तान में इन आरोपों के सही साबित होने पर मृत्युदंड का प्रावधान है। मुशर्रफ ने जब देखा कि अब उन पर कानूनी शिकंजा कसता ही जा रहा है तो उन्होंने फौरन देश छोड़ दिया। लेकिन उन पर आरोप इतने संगीन थे कि वापस आते ही उन पर कई मुकदमे चलाए गए और गिरफ्तार कर लिया गया। 31 मार्च 2014 को मुशर्रफ दोषी करार दे दिए गए थे।
इस बीच, स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर शीर्ष अदालत और गृह मंत्रालय की मंजूरी के बाद मार्च 2016 में परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान से बाहर चले गए और फिर लौटकर नहीं आए। कहा जाता है कि 76 वर्षीय मुशर्रफ एक दुर्लभ किस्म की बीमारी अमिलॉइडोसिस से पीड़ित हैं। इस बीमारी की वजह से बचा हुआ प्रोटीन शरीर के अंगों में जमा होने लगता है। फिलहाल, उनका दुबई में इलाज चल रहा है। इधर, पाकिस्तान में मुशर्रफ को देशद्रोह के दोष में सजा-ए-मौत सुना दी गई है। सवाल यह कि सजा-ए-मौत पाने के लिए क्या मुशर्रफ पाकिस्तान आएंगे? जाहिर है कि वो खुद तो नहीं आएंगे। लेकिन पाकिस्तान की कानूनी प्रक्रिया क्या उन्हें दुबई से पाकिस्तान लाने में सफल हो पाएगी? यह अपने आप में बहुत बड़ा सवाल है।