वाशिंगटन, (mediasaheb.com) इज़राइल में आगामी नौ अप्रैल को होने वाले आम चुनाव में प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू क्या पांचवीं बार भी इस पद पर बरकरार रहेंगे, इस पर दुनिया भर की निगाहें लगी हैं। नेतन्याहू के कार्यकाल में आर्थिक स्थिति मज़बूत हुई है। सामरिक और कूटनीतिक क्षेत्र में अमेरिका के साथ संबंध सुदृढ़ हुए हैं, तो रूस के साथ-साथ चीन, भारत तथा सऊदी अरब से भी क़रीबी रिश्ते बने हैं।
अमेरिका में नेतन्याहू के चाहने वालों की एक लंबी फ़ेहरिस्त है। अमेरिकी मतदाताओं की एक बड़ी संख्या ट्रम्प की राजनीतिक पृष्ठभूमि के लिए अनिवार्य भी हैं। उपराष्ट्रपति माइक पेंस और विदेश मंत्री माइक पोंपियो भी इज़राइल के प्रबल समर्थकों में हैं। सत्ताधारी रिपब्लिकन पार्टी के शीर्ष नेताओं में एक जमात नेतन्याहू के पक्ष में है। रिपब्लिकन नेताओं की यह कोशिश रही है कि मध्य एशिया में शांति के लिए इज़राइल में एक ऐसी मज़बूत सरकार गठित हो जिसके व्हाइट हाउस से सीधे तार जुड़े हों।
गुरुवार को व्हाइट हाउस में इवेंजिकल नेताओं की बैठक हुई। इसमें मध्य एशिया के विशेष दूत जेसन ग्रीन्ब्लैट और एवेंजिकल फ़ाउंडेशन में कर्ताधर्ता जोल रोज़नबर्ग भी मौजूद थे। बैठक के बारे में अधिकृत तौर पर मीडिया में कोई जानकारी नहीं दी गई है। ट्रम्प प्रशासन की ओर से मध्य एशिया में शांति बहाली में इज़राइल के ज़रिए अमेरिकी हितों की रक्षा एक बड़ा मुद्दा है। इस दिशा में व्हाइट हाउस की ओर से प्रेषित इज़राइल और फ़िलिस्तीन के बीच शांति बहाली के प्रस्ताव को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
कहा जा रहा है कि फ़िलिस्तीन के राष्ट्रपति यरुशलम को लेकर कोई समझौता करने को तैयार नहीं होंगे। नेतन्याहू के ख़िलाफ़ इस बार चुनाव में उन्हीं के पूर्व सेनाध्यक्ष बेनी गंत्ज़ ने पूर्व वित्त मंत्री येर लपीड के साथ मिलकर एक मध्यवर्ती मार्ग चुना है। वह इज़राइली जनता से अपील में कह रहे हैं कि कोई इज़राइली नेता ‘किंग’ नहीं है। गंत्ज़ एक आक्रामक नेता ज़रूर हैं, लेकिन उनके पास वह करिश्मा नहीं है, जो नेतन्याहू के पास है।
इज़राइल के अटार्नी जनरल ने नेतन्याहू के ख़िलाफ़ धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार और विश्वासघात के आरोप लगाए हैं, लेकिन इन मामलों के चुनाव मतदान से पूर्व अदालत में चुनौती दिए जाने की कोई गुंजाइश नहीं है। प्रतद्वंद्वी मध्यवर्ती नेताओं बेनी ग्रंत्ज़ और येर लपीड के दबाव का इतना असर ज़रूर पड़ा है कि नेत्याहू की लिकुड पार्टी ने मिलीजुली सरकार के लिए ‘फ़ार राइट’ राजनैतिक दलों का दामन भी थाम लिया है।
‘टाइम्स’ पत्रिका के अनुसार नेतन्याहू इस बार चुनाव जीत जाते हैं, तो वह इज़राइल के पूर्व प्रधानमंत्री डेविड बेन -गूरीयन के सबसे लंबे कार्यकाल को भी पीछे छोड़ देंगे। देखना यह है कि मतदाताओं में पिछले कुछ अरसे से अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, इटली, ब्राज़ील और मेक्सिको के साथ-साथ भारत में सत्ता विरोधी जो हवा चली है, क्या उसे नेतन्याहू रोक पाएंगे?
राजनीति में नए बेनी ग्रंत्ज़ और लेपीड की जोड़ी ने नेतन्याहू की तरह फ़िलिस्तीन को सार्वभौमिक राष्ट्र घोषित किए जाने के सवालों को नज़रंदाज किया है। हमास, ईरान और लेबनान के हिज़्बुल्लाह के आक्रामक रवैए पर कड़ा एतराज़ व्यक्त किया है, ग़ाज़ापट्टी में आतंकी हरकतों के विरुद्ध आवाज़ें उठी हैं, अविभाजित यरुशलम के संरक्षण का वादा किया है और गोलन हाइट की सुरक्षा और वेस्ट बैंक के इज़राइल के अधीन बनाए रखने का संकल्प दोहराया है। इस चुनाव में ये सब ऐसे मुद्दे हैं, जो इज़राइली मतदाताओं को सुहाते हैं।(हि.स.)।