भोपाल, (mediasaheb.com) चातुर्मास यानी कि चौमासा कहे जानेवाले आगामी चार माह तक निरंतर चलनेवाले व्रत-नियमों की शुरुआत होने के पूर्व इस बार आकाश में एक दुर्लभ योग बनने जा रहा है। 149 साल बन रहे इस योग खंडग्रास चंद्रग्रहण की विशेषता यह है कि इस दिन पूर्णमासी भी रहेगी। लोग इस नजारे को साफ आकाश रहने पर दूरदर्शी (टेलीस्कोप) की मदद से अपनी स्मृतियों में कैद कर सकेंगे। मंगलवार, 16 जुलाई की रात चंद्र ग्रहण होगा। वैज्ञानिक और रोचकता की दृष्टि से इसका लुफ्त उठाने के साथ ही यह खंडग्रास चंद्रग्रहण ज्योतिष की नजर में भारत सहित दुनिया के तमाम देशों के लोगों के जीवन पर सीधा असर डालेगा।
आचार्य कुमार सुचित्र रघुनंदन (डॉ. राजेश) ने हिस को बताया कि 149 साल में बन रहा यह योग दुर्लभ इसलिए है, क्योंकि इस बार गुरुपूर्णिमा के दिन यह खंडग्रास चंद्रग्रहण पड़ रहा है। जिसका कि असर भारत सहित जहां-जहां इसे सहजता के साथ देखा जाना स्वभाविक है, जैसे कि भारत के अतिरिक्त ये ग्रहण ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, यूरोप, उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका के अधिकांश भागों में दिखाई देगा । आचार्य रघुनंदन का कहना यह भी है कि जब चन्द्रास्त होगा तब प्रारम्भ में न्यूजीलैण्ड के कुछ भाग, उत्तर तथा दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी भाग, चीन के उत्तरी भाग तथा रूस के कुछ भाग में देखा जाएगा। इसके साथ ही ग्रहण पूर्ण होने के अपने अंतिम समय में अर्जेन्टिना, बोलीविया, पेरु, चिली, ब्राजील के पश्चिमी भाग और उत्तरी अटलांटिक महासागर में देखा जा सकेगा। उन्होंने यह भी कहा कि एशिया के उत्तर-पूर्वी भाग के अधितर भागों में इसे खुली आंखों से देखना संभव नहीं है।
खंडग्रास चंद्रग्रहण, 2 घंटे 59 मिनट का इस खंडग्रास चंद्रग्रहण का ज्योतिष के अनुसार क्या विशेष महत्व है, इसके बारे में पं. भरत शास्त्री का कहना है कि 16 जुलाई की रात होने जा रहा ग्रहण 2 घंटे 59 मिनट तक रहेगा जोकि मध्यरात्रि 1 बजकर 32 मिनट पर प्रारंभ होकर प्रात: 4 बजकर 31 मिनट पर समाप्त हो जाएगा। इसके बाद 4:32 मिनट पर सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करेगा। सूर्य को भारतीय ज्योतिष में ग्रहों का राजा माना गया है। यहां इसके कर्क राशि में प्रवेश करते ही कर्क संक्रांति एवं श्रावण मास का प्रारंभ हो जाएगा। संक्रांति का पुण्यकाल 17 जुलाई की सुबह 10:56 तक रहेगा। इसी के साथ चातुर्मास व्रत-नियम, ध्यान यानी कि पूजन की विविध क्रियाओं जोकि चौमासे में की जाती हैं का आरंभ हो जाएगा।
उन्होंने बताया कि आषाढ़ मास की पूर्णिमा पर पड़ रहा यह चंद्र ग्रहण भारत में आरंभ से लेकर इसके मोक्ष होने तक खंडग्रास के रूप में दिखाई देगा। पूरे तीन घण्टे यह रहेगा। इसके 149 साल पूर्व ऐसा ही योग 12 जुलाई 1870 को गुरु पूर्णिमा पर्व पर देखने को मिला था। उस समय भी शनि, केतु और चंद्र के साथ धनु राशि में स्थित था और सूर्य, राहु के साथ मिथुन राशि में स्थित था।
बना रहा प्राकृतिक आपदाओं बाढ़, भूकंप, तूफान का योग ग्रहण के समय शनि और केतु, चंद्र के साथ धनु राशि में रहेंगे। जोकि ग्रहण का प्रभाव और अधिक बढ़ाएंगे। सूर्य और चंद्र अपने चार विपरीत ग्रह शुक्र, शनि, राहु और केतु के घेरे में रहेंगे। मंगल नीच का रहेगा। सूर्य के साथ राहु और शुक्र रहेंगे। जो आकाशिय स्थितियां ग्रहण के समय बन रही हैं, उनसे जो होगा उस पर सभी ज्योतिष विद्वानों का मत है कि इस ग्रह योग की वजह से भारत सहित जिन देशों में भी यह दिखाई दे रहा है, उन सभी जगह आंतरिक एवं वाह्य तनाव बढ़ेगा। यह खंडग्रास चंद्रग्रहण इस बात के भी संकेत दे रहा है कि बाढ़, भूकंप, तूफान एवं अन्य प्राकृतिक आपदाओं से नुकसान होने के योग हैं।
ग्रहण पांच राशियों के लिए शुभता लेकर आया इस ग्रहण को लेकर आचार्य ब्रजेशचंद्र दुबे कहते हैं कि खंडग्रास चंद्र ग्रहण का सूतक इसके प्रारंभ होने से 09 घंटे पहले ही लग जाएगा। सायं 4 बजकर 32 मिनट पर सूतक समय शुरू होता है जोकि ग्रहण की समाप्ति के साथ ही खत्म होगा। इसलिए जिन्हें भी शुभ कार्य करने हैं, वह सूतक काल आरंभ होने से पूर्व ही पूरा कर लें। उन्होंने कहा कि सभी बारह राशियों पर इसका अच्छा-बुरा प्रभाव पड़ेगा। मेष, कर्क, तुला, कुंभ, मीन, राशियों के लिए यह ग्रहण शुभ योग लेकर आ रहा है, जबकि मिथुन, वृषभ, सिंह, कन्या, वृश्चिक, धनु, मकर राशिवालों के लिए इस ग्रहण के ज्यादा अच्छे परिणाम नहीं होंगे। अधिकांश इन राशि के लोगों को कुछ न कुछ समस्याओं का सामना करने का योग यह खंडग्रास चंद्रग्रहण बना रहा है।
ज्योतिष एवं भागवताचार्य ब्रजेश चंद्र का कहना है कि हिन्दू सनातनी आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा का पूर्ण धार्मिक लाभ लेने के लिए अपने गुरुवर का ध्यान-पूजन तो करे हीं लेकिन यदि संभव हो तो श्री सत्यनारायण व्रत, यथा शक्ति दान, ऋषि वेद व्यास की जयंती कोकिला व्रत अर्थात् कोयल के रूप में भगवान शिव की विशेष पूजा करें। जिनके लिए संभव हो वे रुद्राभिषेक करा सकते हैं। वह ये पूजन दोपहर 1.30 बजे से पहले यानी कि सूतक लगने से पूर्व करें। उसके बाद सूतक काल शुरु हो जाने से पूजा-पाठ नहीं हो सकेगी। (हि.स.)।