नीट क्वालिफाई करके दसवीं पास पिता के सपनों को दिया पंख
भिलाई(mediasaheb.com). बालोद जिले के डौंडीलोहारा ब्लॉक के वनांचल ग्राम सहगांव की खिलेवरी पिस्दा ने डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए सबसे कठिन माने जाने वाले नीट की परीक्षा क्वालिफाई किया है। अब आंगनबाड़ी सहायिका गीता की बेटी जगदलपुर मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेकर डॉक्टर बनेगी। विपरीत आर्थिक परिस्थितियों के बीच दसवीं पास किसान पिता डोमेंद्र का सपना था कि बेटी पढ़कर लिखकर डॉक्टर बने। इसलिए उन्होंने परिवारवालों से कर्ज लेकर बेटी को एक साल तक नीट की कोचिंग कराई। महज तीन एकड़ में किसानी करने वाले पिता कहते हैं कि बेटी ने एमबीबीएस की सीट हासिल करके उस ऋण का मूल्य अदा कर दिया है। ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाली खिलेश्वरी अपनी सफलता से बेहद उत्साहित है, वो कहती है कि अगर आपके सपने बड़े हैं तो खुद को एक मौका जरूर देना चाहिए। नीट के लिए एक साल ड्रॉप लेकर मैंने खुद को दूसरा चांस दिया। कड़ी मेहनत से ही आज मैं एमबीबीएस की सीट हासिल कर पाई।
इंग्लिश से लगता था डर, सोचती थी कि कहीं पीछे न रह जाऊं
खिलेश्वरी ने बताया कि गांव के स्कूल में दसवीं तक पढ़कर आगे की पढ़ाई प्रयास आवासीय विद्यालय दुर्ग से की। 12 वीं बोर्ड में 80 प्रतिशत अंक आए लेकिन इंग्लिश का डर मन से जा नहीं रहा था। एक साल ड्रॉप लेकर जब नीट की तैयारी शुरू की तो यही अंग्रेजी एक बार फिर मेरी पढ़ाई में रोड़ा बनने लगी। जिसके कारण कई बार मैं डिप्रेशन में चली जाती थी। लगता था कि इस अंग्रेजी की वजह से मैं पीछे न रह जाऊं। एक दिन जब कोचिंग में हिंदी मीडियम से पढ़कर डॉक्टर बनने वाली महिला चिकित्सक कविता से रूबरू हुई तब लगा कि जब वो कर सकती हैं तो मैं क्यों नहीं। उसी दिन से अंग्रेजी सुधारने के लिए मेहनत करना शुरू कर दिया। अब अंग्रेजी से डर नहीं लगता। जो सब्जेक्ट बोरिंग लगता था उसे भी इंटरेस्ट से पढऩा शुरू किया।
नोट्स और पढ़ाने का तरीका आया सचदेवा में रास
खिलेश्वरी ने बताया कि जब वह नीट के लिए कोचिंग तलाश कर रही थी तभी उनके परिचित और फिलहाल डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे भैय्या ने सचदेवा कॉलेज भिलाई के बारे में बताया। वो यहां के एक्स स्टूडेंट भी रह चुके हैं। इसलिए किसी और जगह जाने की बजाय सीधे सचदेवा भिलाई में ही एडमिशन लिया। यहां पढ़ते-पढ़ते एक साल कैसे निकल गया पता ही नहीं चला। एक समय था जब मुझे नोट्स बनाने में बहुत दिक्कत होती थी। सचदेवा में टीचर्स ने बहुत ही सरल तरीके से नोट्स बनाना सिखाया। नीट की तैयारी के लिए हिंदी मीडियम के स्टूडेंट्स के लिए इससे बेहतर और कोई कोचिंग हो ही नहीं सकता। टीचर्स हर बार नए तरीके से चीजों को समझाते थे। जिससे हम पढ़ी हुई बातों को लंबे समय तक याद रख पाए।
डिप्रेशन दूर करने जैन सर ने सुनाई थी हाथी की कहानीनीट की तैयारी के दौरान कई बार डिप्रेशन में आ जाती थी। लगता था सब मुझसे अच्छा कर रहे हैं। कहीं मैं अपने माता-पिता का पैसा तो वेस्ट नहीं कर रही। मैं डॉक्टर बन पाऊंगी या नहीं। ऐसे सवाल मन में घूमते रहते थे। एक दिन चिरंजीव जैन सर ने काउंसिलिंग
सेशन में मुझे एक हाथी की कहानी सुनाई। उन्होंने बताया कि दो दोस्त थे। एक दोस्त के पास छोटा हाथी था। वो उसे रस्सी से बांधकर रखता था। एक दिन छोटे हाथी ने भागने की कोशिश की पर वो भाग नहीं पाया। धीरे-धीरे हाथी बड़ा हो गया और रस्सी, जंजीर में बदल गई। आदमी से कई गुना बड़ा और शक्तिशाली होने के बाद भी वो हाथी आज भी जंजीरों में जकड़ा हुआ है। क्योंकि उसने कभी दोबारा उस जंजीर को तोडऩे की कोशिश ही नहीं की। तब समझ में आया कि कोशिश करने से नंबरों को कभी भी बदला जा सकता है। दोबारा कोशिश करूंगी तो जरूर अच्छे नंबर मिलेंगे। धीरे-धीरे और लगातार कोशिश से टेस्ट सीरिज में रिजल्ट अच्छा आने लगा और सीधे नीट क्वालिफाई होने का सर्टिफिकेट घर लेकर पहुंची। जैन सर ने काउंसलिंग के साथ ही एक पैरेंट्स की तरह ख्याल रखा। जिससे कारण घर से दूर रहकर कभी घर की कमी महसूस नहीं हुई।